रेलवे सुरक्षा बल का इतिहास
प्रारम्भ में रेल का विकास अलग-अलग कम्पनियों द्वारा हुआ जैसे ग्रेट पेनिनसुला रेलवे कम्पनी व ईस्ट इण्डिया कम्पनी, इन कम्पनियों को देश के कोने-कोने से कच्चा माल को इक्ट्ठा कर के देश के बाहर भेजने के लिए, बाहर से बनकर आये हुये माल को भारत के कोने-कोने में पहुचाने के लिए और सेना को देश के भीतर भिन्न-भिन्न स्थानों पर पहुचाने के लिए रेल लाइनों का निर्माण करना पड़ा। आवागमन के बढ़ते चरण के साथ-साथ रेलवे में माल की सुरक्षा के लिए तथा रेल क्षेत्रों में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए एक संगठन की आवश्यकता का जन्म हुआ।
1854 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने रेलवे में माल की सुरक्षा व रेल क्षेत्रों में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए कुछ व्यक्तियों के एक संगठन को बनाया गया जिसे ”पुलिस” कहा जाने लगा। यह कम्पनी के अधीन कार्य करती थी। सन 1861 में "पुलिस एक्ट” पास हुआ। "ईस्ट इण्डिया कम्पनी” द्वारा बनाई गई पुलिस को इसी पुलिस में शामिल कर दिया गया।
1861 का पुलिस एक्ट भारतवर्ष के लिए पास किया गया था इसमें बंगाल सरकार भी शामिल थी।1 870 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी व बंगाल सरकार में मतभेद हो जाने के कारण इस ’पुलिस संस्था’ का विभाजन दो भागों गवर्नमेंट पुलिस तथा प्राइवेट पुलिस में हो गया। गवर्नमेंट पुलिस का कार्य जनता में शांति और व्यवस्था बनाए रखना था जबकि प्राइवेट पुलिस रेल सम्पत्ति व माल की सुरक्षा करती थी।
सन 1872 में सरकार द्वारा रेलवे के माल की सुरक्षा के लिए एक कमेटी का गठन किया गया। कमेटी के रिपोर्ट के आधार पर पुलिस बल के कर्तव्यों को दो भागों में बांटा गया। अपराध पर नियन्त्रण करना तथा यार्ड, माल एवं अन्य रेलवे सम्पत्ति की देखभाल करना। इसी समय यह जरूरत महसूस की गई कि रेलवे के पास अपना देख-रेख व निगरानी करने वाला ”वाच एण्ड वार्ड” सिस्टम हो। सन 1881 में सरकार ने एक दूसरी कमेटी नियुक्त की जिसने पूर्ण रूप से रेलवे सम्पत्ति की सुरक्षा का भार” वाच एण्ड वार्ड” को देने की सिफारिश की और रेलवे पुलिस जो इस काम के लिए लगाई गई थी उसको वापस कर दिया गया और 1882 में सरकार ने सभी रेल कम्पनियों को अपने माल की सुरक्षा के लिए ”वाच एण्ड वार्ड” प्रथा लागू करने के लिए सूचित किया। इस प्रकार ”वाच एण्ड वार्ड” का जन्म हुआ।
रेलवे में बढ़ते हुए अपराधों की रोकथाम के लिए ”वाच एण्ड वार्ड” के पुर्नगठन की आवश्यकता को देखते हुए सन 1953 में रेलवे बोर्ड द्वारा एक सुरक्षा सलाहकार समिति को नियुक्त किया गया। सलाहकार समिति की सलाह पर ”वाच एण्ड वार्ड” संस्था को “रेलवे सिक्योरिटी फोर्स” के रूप में बदल दिया गया। रेलवे सिक्योरिटी फोर्स ने 1954 से 1956 तक कार्य किया। इसी दौरान सन 1955 में रेलवे स्टोर्स (विधि विरूद्ध कब्जा) अधिनियम 1955 पास किया गया, जिसमें सिक्योरिटी फोर्स को कुछ अधिकार दिये गये, परन्तु अधिकार कम होने के कारण रेलवे में होने वाले अपराधों पर पूर्णतया अंकुश नहीं लगाया जा सका। उपरोक्त कमेटी की सलाह पर 13 जनवरी सन् 1956 को रेलवे सिक्योरिटी फोर्स का दूसरा नाम ”रेलवे सुरक्षा बल” रखा गया। 29 अगस्त 1957 में “रेल सुरक्षा बल अधिनियम” संसद द्वारा पास किया गया जो 10 सितम्बर 1959 को लागू हुआ, तब से रेल सुरक्षा बल का वैधानिक रूप से गठन हुआ। 10 सितम्बर1959 को ही “रेलवे सुरक्षा बल नियम 1959“ भी लागू हुआ।
देश की सीमा से लगे स्थानों तक रेलगाड़ियों को सुरक्षित पहुचाने व लाने के लिए क्षेत्रीय रेलों से ’रेल सुरक्षा बल’ से अधिकारियों तथा जवानों को इकट्ठा करके एक नये बल "रेलवे सुरक्षा विशेष बल” का गठन किया गया। इसका नाम सन् 1965 में रेल सुरक्षा विशेष बल रखा गया। इनका मुख्य कार्य रेल सुरक्षा बल की विशेष परिस्थितयों में सहायता करना है। वर्तमान में इसकी 12 बटालियनें हैं। इसका एक महानिरीक्षक होता है जो महानिदेशक/रे.सु.ब. के अधीन होता है। रेलवे सुरक्षा विशेष बल का मुख्य कार्य लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव के दौरान बंदोबस्त ड्यूटी, मेला ड्यूटी, आतंकवाद व नक्सलवाद जैसे प्रभावित रेल क्षेत्रों में यात्रियों की सुरक्षा हेतु गाड़ी अनुरक्षण ड्यूटी, रेलवे सम्पत्ति की सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में पेट्रोलिंग ड्यूटी इत्यादि है, जो कि रेलवे सुरक्षा विशेष बल द्वारा अपनी विशेष जवाबदेही के साथ अपनी कर्तव्यों को बड़ी सतर्कता के साथ सम्पन्न किया जाता है।
रेलवे में चोरी सम्बन्धी अपराधों को रोकने के लिए, रेलवे सम्पत्ति को हानि से बचाने के लिये तथा अपराधियों को दण्ड दिलाने के लिए रेलवे स्टोर्स (विधि विरूद्ध कब्जा) अधिनियम 1955 को समाप्त करते हुए रेलवे सम्पत्ति (अवैध कब्जा) अधिनियम1966 भारतीय संसद द्वारा 01.08.1966 को पास किया गया जो 01.04.1968 से सम्पूर्ण भारतवर्ष में लागू किया गया। इस एक्ट के लागू करने का मुख्य उद्देश्य यह भी था कि रेलवे प्रशासन में बढ़ते हुए अपराधों को रोका जाये और रेलवे प्रशासन द्वारा दिये जाने वाले दावों को कम किया जाये। इस अधिनियम से रेलवे सम्पत्ति की चोरी में काफी अंकुश लगा है। फिर भी रेलवे सुरक्षा बल को और अधिक शक्तिशाली बनाने हेतु रेलवे सम्पत्ति (अवैध कब्जा) अधिनियम 1966 में संशोधन करते हुए वर्ष 2012 में इसकी मूल धारा 3 , 4 एवं 8 में संशोधन किया गया।
रेल सुरक्षा बल अधिनियम 1957 को 20 सितम्बर 1985 को संशोधित किया गया, रेलवे सुरक्षा बल को, संशोधित अधिनियम के अनुसार भारत संघ का सशस्त्र बल का दर्जा प्राप्त हो गया। रेलवे सुरक्षा बल के इतिहास में महान और महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ, जिससे उनके कार्य का स्तर ऊंचा उठा और बल की श्रेणी में आ गये।भारत संघ के सशस्त्र बल का दर्जा प्राप्त होने पर रे.सु.ब. ने "स्थापना दिवस” सर्वप्रथम दिनांक 20.09.1986 को मनाया।
यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए रेल सुरक्षा बल मूल अधिनियम 1957 संशोधित अधिनियम 1985 में भी संशोधन किया जाना आवश्यक हो गया। केन्द्र सरकार राजपत्र में अधिसूचना जारी करके पुनः रेल सुरक्षा बल अधिनियम 1985 में संशोधित करते हुए रेल सुरक्षा बल(संशोधित) अधिनियम 2003 लागू हुआ, जो दिनांक 01.07.2003 से लागू हुआ। अब इस संशोधन के तहत मुख्य अधिनियम के मुख्य शीर्षक में शब्द रेल सम्पत्ति के स्थान पर शब्द रेलवे सम्पत्ति, यात्री परिसर तथा यात्रियों को प्रतिस्थापित किया गया है। इस अधिनियम की धारा 2 के क्लॉज(सी-ए) में यात्री शब्द धारा 2 में क्लॉज (सी-बी) में यात्री परिसर शब्द जोड़ा गया है। इसी तरह मूल अधिनियम की धारा 11, 12 एवं 14 में भी संशोधन कर इस अधिनियम का अधिकार क्षेत्र विस्तृत किया गया है।
रेलवे अधिनियम 1989 में यात्रियों की सुविधा एवं सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए रेलवे सुरक्षा बल को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गयी जिसे पूरा करने हेतु रेलवे अधिनियम 1989 में भी संशोधन किया जाना आवश्यक हो गया। इसी परिपेक्ष्य में केन्द्र सरकार द्वारा एक और कदम उठाते हुए रेलवे द्वितीय (संशोधन) अधिनियम-2003 पारित किया गया जिसमें दो नई महत्वपूर्ण परिभाषाएं जोड़ी गयी है। “रेल सेवक“ कीपरिभाषाविस्तृतकीगयीहै, जिसमेंरेलवेसुरक्षाबलकेसदस्यकोशामिलकियागयाहै।इसअधिनियमकीधा रा 179 कीउपधारा(2) के तहत दण्डनीय अपराधों को प्राधिकृत अधिकारी के लिए दं0प्र0सं0 के प्रावधानों अधीन संज्ञेय अपराध के समान बनाया गया है साथ ही प्राधिकृत अधिकारी को रेलवे अधिनियम की 29 अपराधोंमें गिरफ्तारी, जॉच तथा अभियोजन के अनन्य अधिकार दिये गये हैं व विभिन्न अपराधों के संदर्भ में रेल सेवक, पुलिस और प्राधिकृत अधिकारी में स्पष्ट विभेद किया गया है। धारा 179 की उप धारा(2) के अंतर्गत गिरफ्तारी, जॉच एवं अभियोजन के अधिकार रेलवे सुरक्षा बल को देकर राज्य पुलिस का कार्यभार कम किया गया है जबकि मूल अधिनियम मेंइ न अपराधों के संबंध में पुलिस को ही कार्यवाही करनी पड़ती थी। मूल अधिनियम की धारा 180 में प्राधिकृत अधिकारी को बिना वारण्ट गिरफ्तारी करने का अनन्य अधिकार दिया गया है। धारा 179 को दो मुख्य भागों में बांट दिया गया है। प्राधिकृत अधिकारी को 29 अपराधों के संबंध में जॉच एवं अनुसंधान के अधिकार दिये गये है, जबकि धारा 150, 151 तथा 152 जैसे गंभीर अपराधों के लिए अलग व्यवस्था की गयी है। धारा 180 (एफ) में यह व्यवस्था की गयी है कि धारा 179 की उपधारा (2) में वर्णित किसी अपराध के लिए कोई न्यायाधीश तब तक संज्ञान नहीं ले सकता जब तक की प्राधिकृत अधिकारी द्वारा उस मामलें में शिकायत प्रस्तुत न कर दी गयी हो। धारा 180 (जी) में जॉच अधिकारी को शक्ति प्रदान की गयी है कि जॉच कार्यवाही के दौरान इरादतन अपमान करने वाले, बाधा पहुचाने वाले या इरादतन असत्य कथन करने वाला व्यक्ति को दण्डित करवा सकें। जबकि मूलअधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था।
रेलों में माल का परिवहन और यात्रियों की सुरक्षित यात्रा का दायित्व, रेल सुरक्षा बल पर तेजी से बढ़ता जा रहा है। आवश्यकता के समय यह सशस्त्र बल कानून और व्यवस्था बनाने में पुलिस व सरकार की सहायता भी करता है। रेल सुरक्षा बल को बड़ी-बड़ी चुनौतियों का सामना ड्यूटी के दौरान करना पड़ता है। इसलिए कर्तव्य पालन में हुई गलतियों के लिए रेलवे सुरक्षा बल को कुछ कानूनी संरक्षण भी प्रदान किये गये है जैसे-भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता 45 के अंतर्गत संघ के सशस्त्र बलों का कोई भी सदस्य, अपने द्वारा शासकीय कर्तव्यों के पालन करते समय किए गए या किए जाने वाले किसी कार्य के लिए बगैर केन्द्र सरकार की अनुमति प्राप्त किये गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता 132 के अंतर्गत किए गए किसी काम के लिये किसी व्यक्ति के विरूद्ध कोई अभियोजन किसी फौजदारी न्यायालय में नहीं किया जाएगा। भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता 197 (2) के तहत कोई भी न्यायालय संघ के सशस्त्र बल के किसी सदस्य द्वारा किये गये किसी अपराध का संज्ञान, जिसके बारे में यह कहा गया है कि उसके द्वारा तब किया गया था जब वह अपने कर्तव्यों के पालन में कार्य कर रहा था। केन्द्र सरकार की पूर्व मंजूरी से करेगा अन्यथा नहीं। इसी प्रकार भारतीय दण्ड संहिता की धारा 99, रेल अधिनियम 1989 की धारा 186 में सद्भावपूर्वक की गयी कार्यवाही के लिए संरक्षण, रेल सुरक्षा बल अधिनियम 1985 की धारा 20 के अंतर्गत बल सदस्यों द्वारा किये हुए कामों का बचाव, रेल सुरक्षा बल नियम 1987 के नियम 255 में संघ का सशस्त्र बल रहते हुए सुरक्षा, नियम 256 में जहॉ बल सदस्यों ने गोली चलाई हो वहां सुरक्षा, नियम 273 में पद की जोखिम के कारण सुविधायें एवं न्यायिक अधिकारी संरक्षण अधिनियम 1850 के अंतर्गत रेलवे सुरक्षा बल के सदस्यों को संरक्षण प्राप्त है। इसी क्रम में रेलवे सुरक्षा बल के सदस्यों को भारत सरकार द्वारा रेल अधिनियम के अंतर्गत 29 धाराओं, रेलवे सुरक्षा बल अधिनियम के अंतर्गत 21 धाराओं, रेल सम्पत्ति अवैध कब्जा अधिनियम के अंतर्गत 16 धाराओं एवं रेलवे सुरक्षा बल नियमावली 1987 में 280 नियमों के अंतर्गत शक्ति प्रदान की गयी है, जो रेलवे सुरक्षा बल में उर्जा का कार्य करती है। इन नियमों एवं धाराओं के अंतर्गत भारतीय दण्ड संहिता तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धाराओं को अमल करते हुए रेलवे सुरक्षा बल सदस्यों द्वारा तत्परता का परिचय देते हुए अपराधियों के विरूद्ध कार्यवाही की जाती है एवं माननीय न्यायालय में दण्डादेश हेतु प्रस्तुत कर दिया जाता है।
रेलवे सुरक्षा बल प्रत्येक अनुरक्षित गाड़ियो में प्रशिक्षित व कुशल बल कर्मियों को आधुनिक संसाधनों जैसे ड्रैगन सर्च लाइट, वाकी-टाकी, सीयूजी फोन व आधुनिक स्वचालित हथियारों में शामिल एके-47, इन्सासव एस.एल.आर. से रेल यात्रियों को सुरक्षित एवं भयमुक्त यात्रा पूर्ण कराने हेतु प्रतिबद्ध है । रेलवे सुरक्षा बल में श्वान का काफी महत्व है। यह रेल एवं रेल यात्रियों की सम्पत्ति से संबंधित अपराधों को ढूंढ निकालने में सहायक है। इसकी मदद से बहुत से ही अपराधों को पता लगाया जा चुका है। यह बम तथा आपत्तिजनक पदार्थों को भी बड़ी कुशलता से पता लगा लेता है।
रेलवे बोर्ड स्तर पर यात्री सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हेल्पलाइन नम्बर 1800111322 जारी किया गया है व महिलाओं की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए प्रत्येक क्षेत्रीय रेलों में अलग-अलग टोल फ्री नम्बर जारी किये गये हैं जैसे उत्तर मध्य रेलवे में 18001805315 जारी किया गया है व इस रेल के अधीन प्रत्येक मण्डलों में 1322 नम्बर जारी किया गया है। यह नम्बर बोर्ड स्तर पर तथा क्षेत्रीय व मण्डल स्तर पर उपलब्ध रहते है। इसका कुशल संचालन सुरक्षा नियन्त्रण कक्ष द्वारा किया जाता है। इसकी सेवा दिन-रात चालू रहती है। विगत वर्षों में रेलवे सुरक्षा बल में महिला बल सदस्यों की भागीदारी बढ़ायी गयी है, इससे महिला यात्री की सुरक्षा के प्रति अपराधों में कमी आई है। अभी हाल में रेल प्रशासन ने यात्री द्वारा किसी घटना की एफआईआर दर्ज कराने की प्रक्रिया में होने वाली परेशानियों को दूर करते हुए यात्रियों को यह सुविधा प्रदान कर दी है कि वे ट्रेन में ही प्राथमिकी दर्ज करवा सकते हैं। इसके लिए द्विभाषी फार्म सभी आरपीएफ स्कोर्ट पार्टी, आरपीएफ पोस्ट, रिजर्व कम्पनी, आरपीएफ बूथ, कोच कंडक्टर, कोच अटेंडेट, ट्रेन गार्ड, स्टेशन मास्टर, स्टेशन अधीक्षक आदि के पास मौजूद रहेगा।