गाड़ियों में गाड़ी सुरक्षा चेतावनी प्रणाली(टीपीडब्ल्यूएस)
गाड़ी को दुर्घटना से बचाने के लिए उत्तर मध्य रेलवे ने गाड़ियों में गाड़ी सुरक्षा चेतावनी प्रणाली (TPWS) लगाई है। यदि कोई गाड़ी खतरे की स्थिति दर्शाने वाले सिगनल की ओर अत्यंत तीव्र गति से आ रही हो अथवा खतरे की स्थिति प्रदर्शित करने वाले सिगनल पर नहीं रुकती है तब यह यंत्र स्वत: गाड़ी का ब्रेक लगा देगा। जब गाड़ी किसी गति प्रतिबंध अथवा बफर स्टॉप की ओर तेज गति से आ रही हो तब भी यह यंत्र गाड़ी का ब्रेक लगा देगा। ये यंत्र 12279/12280 ताज एक्सप्रेस, 12911/12912 बलसाड़-हरिद्वार एक्सप्रेस, 12189/12190 महाकौशल तथा 14211/14212 आगरा-नई दिल्ली इंटरसिटी एक्सप्रेस में लगाए गए हैं। अब तक यह प्रणाली उत्तर मध्य रेलवे में संचालित 35 इंजनों में लगाई जा चुकी है।
एक मानक गाड़ी सुरक्षा चेतावनी प्रणाली के संस्थापन के क्रम में सिगनल के निकट ट्रैक पर एक ट्रांसमीटर लगाया जाता है और सिगनल की खतरे की स्थिति में आने पर यह ट्रांसमीटर सक्रिय हो जाता है। ऐसी स्थिति में जब कोई गाड़ी उस सिगनल को पार करने की कोशिश करती है तब उसका आपातकालीन ब्रेक लग जाता है। यदि कोई गाड़ी बहुत तेज गति से जा रही हो तब उसे इतनी जल्दी टक्कर लगने के स्थान से पहले रोकना संभव नहीं हो पाता है, इसलिए सिगनल से पहले एक दूसरा ट्रांसमीटर लगाया जाता है जो अत्यधिक गति से जा रही गाड़ियों को भी ब्रेक लगाकर उन्हें सिगनल के पहले रोक देता है। यह 120 किमी. प्रति घंटे की गति से भी चल रही गाड़ियों को सुरक्षित रोक सकता है।
ट्रैक पर लगाए जाने वाले उपकरण :
स्टॉप सिगनल पर गाड़ी के आने की दिशा में सिगनल से पहले 50-450 मीटर की दूरी पर एक जोड़ा इलेक्ट्रानिक लूप लगाया जाता है। इन लूपों के बीच की दूरी गाड़ी की गति को नियंत्रित करती है।
इसके अलावा एक जोड़ी लूप सिगनल पर लगाया जाता है जो सिगनल के ''खतरे''की स्थिति में आने पर सक्रिय हो जाता है। ये हमेशा एक साथ लगाए जाते हैं और ये तेज गति से आ रही गाड़ी को रोक देंगे भले ही गाड़ी की गति कितनी भी क्यों न हो।
गाड़ी सुरक्षा चेतावनी प्रणाली के मानक संस्थापन में दो जोड़ी लूप (कभी-कभी इन्हें ''ग्रिड'' अथवा ''टोस्ट रैक्स'' कहा जाता है) लगाए जाते हैं। दोनों जोड़ियों में एक-एक ''आर्मिंग'' तथा एक-एक ''ट्रिगर'' लूप रहते हैं। गाड़ी सुरक्षा चेतावनी प्रणाली से संबंधित सिगनलों में ''खतरे'' की स्थिति में आने पर ये लूप सक्रिय हो जाते हैं। उक्त सिगनल के ''आगे बढ़ो'' स्थिति में रहने पर ये लूप निष्क्रिय रहेंगे।
इन लूपों का पहला जोड़ा अधिक गति (ओवर स्पीड)बोधक प्रणाली है जो लाइन की गति तथा ढलान इत्यादि के आधार पर निर्धारित की गई दूरी पर लगाए जाते हैं। इन लूपों को एक दूसरे से इतनी दूर पर लगाया जाता है कि के ''खतरे'' की स्थिति में सिगनल की ओर आने वाली गाड़ी जो सुरक्षित गति से चल रही हो वह पूर्व निर्धारित समय (लगभग 1 सेकेंड) में पार न कर सके। लूपों का दूसरा जोड़ा सिगनल के निकट पास-पास लगाया जाता है और इसे गाड़ी रोक प्रणाली (ट्रेन स्टॉप सिस्टम/TSS) कहा जाता है।
गाड़ी के इंजन के चालक कक्ष में लगाए जाने वाले उपकरण :
गाड़ी के चालक कक्ष में गाड़ी सुरक्षा चेतावनी प्रणाली स्थायी आइसोलेशन स्विच सहित गाड़ी सुरक्षा चेतावनी पैनल लगा होता है। इस प्रणाली में दो इंडीकेटर लैंप तथा एक पुश स्विच लगी होती है। एक लैंप का उपयोग यह प्रदर्शित करने के लिए होता है कि गाड़ी सुरक्षा चेतावनी प्रणाली (टीपीडब्ल्यूएस)/ सक्रिय चेतावनी प्रणाली (एडब्ल्यूएस) ब्रेक लगाने (एडब्ल्यूएस और टीपीडब्ल्यूएस प्रणालियाँ एक दूसरे से जुड़ी हैं) की मांग कर रही है। अस्थायी आइसोलेशन इंडीकेटर/फाल्ट इंडीकेटर यह प्रदर्शित करता है कि या तो स्थायी आइसोलेशन स्विच द्वारा प्रणाली को स्थायी रूप से आइसोलेट कर दिया गया है या फिर गाड़ी सुरक्षा चेतावनी प्रणाली में कोई खराबी आ गई है। प्राधिकार के साथ सिगनल को खतरे की स्थिति में पार करने के लिए ''ट्रेन स्टॉप ओवरराइड'' नामक स्विच का उपयोग किया जाता है। यह सिगनल के गाड़ी सुरक्षा चेतावनी प्रणाली तथा गाड़ी रोक प्रणाली के लूपों को स्थायी रूप से लगभग 20 सेकेंडके लिए अथवा लूप को पार कर लिए जाने तक अप्रभावी कर देगा।
स्थायी आइसोलेशन स्विच को तभी परिचालित किया जाएगा जब गाड़ी का परिचालन विकृत (डिग्रेडेड) स्थितियों में किया जा रहा हो और मल्टीपल स्टॉप आस्पेक्ट को खतरे की स्थिति में प्राधिकार कर पार किया जाना अपेक्षित हो, इसके बाद तत्काल इस प्रणाली को अवश्य बहाल किया जाए।
गाड़ी सुरक्षा चेतावनी प्रणाली पूर्णतया सुरक्षित प्रणाली है और यह गाड़ी दुर्घटनाओं को रोकता है और यात्रियों की संरक्षा सुनिश्चित करता है। अन्य गाड़ियों में भी शीघ्र ही यह प्रणाली लगाई जाएगी। वर्तमान में यह प्रणाली उत्तर मध्य रेलवे के ट्रंक रूट के आगरा-पलवल सेक्शन में लगाई गई है। आगरा-ग्वालियर सेक्शन में भी इसे लगाने की स्वीकृति प्राप्त हो गई है। दूसरे ट्रंक रूट अर्थात गाजियाबाद-मुगलसराय रूट पर भी इस प्रणाली को लगाया जाना प्रस्तावित है जिसमें से कानपुर-मुगलसराय के बीच के भाग पर इसे लगाने की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है।